समझें हनुमान चालीसा का अर्थ एवं लाभ हिंदी में
हनुमान चालीसा का पाठ: आपकी हर मनोकामना को पूरा करने का अचूक उपाय। जो व्यक्ति दिन में 7 बार हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है और जीवन में चमत्कारिक बदलाव आते हैं। बच्चों की बुद्धि बढ़ाने के लिए सूर्य देव को जल अर्पित करते समय हनुमान चालीसा का पाठ करें। यदि घर में भूत-प्रेत या नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हो, तो 40 दिनों तक रोजाना 100 बार हनुमान चालीसा का पाठ करने से सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। यह दिव्य स्तोत्र आपके जीवन को शांति, समृद्धि, और सुरक्षा से भर देगा।
हनुमान चालीसा का सरल हिंदी में अर्थ: पूरी व्याख्या के साथ
दोहा: श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
अर्थ: तुलसीदास जी कहते है की मैं श्री गुरु महाराज के चरणों की धूल से अपनी अपने
मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के उस निर्मल यश का वर्णन करता हूँ
जो चार प्रकार के फल अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रदान करता है।।
हे पवन कुमार ..हे हनुमानजी मैं स्वयं को बुद्धिहीन मानकर आपका स्मरण करता हूँ.
आपको याद करता हूँ, आप मुझे बल, बुद्धि और ज्ञान दीजिए और मेरे सभी विकार, कलेश,
सभी दुखो का नाश कर दीजिये।।
हनुमान चालीसा चौपाई:
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
अर्थ: श्री हनुमान जी आपकी जय हो, आप ज्ञान और गुण के सागर हैं, हे कपीश्वर आपकी जय हो, तीनों लोक स्वर्ग, धरती और पाताल में
आप की कीर्ति व्याप्त है।। हे अंजनी नंदन, हे रामदूत, आपके बल की कोई तुलना ही नहीं है आप स्वयं सब शक्तियों के दाता है सागर हैं।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।।
अर्थ: हे महावीर हे हनुमान जी आपका पराक्रम महान है..आप खराब बुद्धि को दूर करते हैं और अच्छी बुद्धि वालों के सहायक बनते हैं।।
आप का रंग सोने के समान है .. स्वर्ण के समान चमकीला है..आप के कानों में कुंडल शोभित हैं और आपके घुंघराले बाल है।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
अर्थ: आपके हाथ में वज्र और ध्वजा विराजमान है और आपके कंधे पर मुंज की जनेऊ खूब सजती है।।
हे शंकर के अंश हे शंकर के अवतार हे केसरी के नंदन आपके पराक्रम और महान यश की वंदना संसार भर में होती है।।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
अर्थ: आप प्रखंड विद्वान है, हे गुणवान हनुमान जी आप श्री राम का काज करने के लिए सदैव आतुर रहे है।।
आपको श्री राम कथा सुनने में आनंद आता है रस आता है, श्री राम जी, लक्ष्मण जी, सीता जी आपके ह्रदय में बसे है।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।
अर्थ: लंका में जब सीता जी के सामने सूक्ष्म रूप में प्रकट हुए लेकिन जब लंका जलाने की बारी आई तो आपने भयानक रूप धारण कर लिया।।
आपने विकराल रूप धारण करके सभी राक्षसों को मार डाला और श्री रामचंद्र के सभी उद्देश्यों को सफल बनाया।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
अर्थ: आपने लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए जब संजीवनी बूटी लाई और उनके प्राण बचाए तो श्री राम जी ने हर्षित होकर खुशी से आपको
ह्दय से लगा लिया।। श्री राम जी ने आपकी प्रशंसा की… और कहा की मेरे लिए तुम मेरे भाई भरत के समान ही प्रिय हो।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
अर्थ: श्री रामचंद्र जी ने यह कहकर आपको ह्रदय से लगा लिया की आपका यश अमूल्य है।। तुलसीदास जी कहते हैं हनुमान जी
जब ऋषि मुनि देवता आपके यश वर्णन नहीं कर पाते तो मेरे जैसा कोई कवि कैसे आपके गुणों का वर्णन कर सकता है?
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
अर्थ: हनुमान जी आप ने ही सुग्रीव पर उपकर करते हैं उन श्री राम से मिलवाया जिसके कारण सुग्रीव राजा बने और सारा संसार यह भी जनता है।।
आप की बात मानकर विभीषण भी लंका के राजा।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
अर्थ: हे हनुमान जी जो सूर्य कई युगों कई हजारों योजन दूर है.. वह सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर पल भर में लपका।।
तो इसमे कोई आश्चर्य नहीं की आपने श्री रामचंद्र जी की अंगूठी मुट्ठी में रखकर समुद्र को लांघ लिया होगा।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
अर्थ: इस संसार में जो जो कठिन काम है जो भी दुगर्म काम है वो आपकी कृपा से सरल हो जाते है।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।
अर्थ: श्री रामचंद्र जी के द्वार के आप ही रखवाले हैं जिसमे आपकी अनुमति के बिना किसी का भी प्रवेश निषेध है।।
जब आप किसी के रक्षक बन जाए तो किस बात का डर? किसी बात का डर नहीं रह जाता है।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
अर्थ: आपके सिवाय आपके वेग, आपके तेज को कोई नहीं रोक कोई नहीं टाल सकता, आपकी गर्जना से तीन लोग कांप जाते हैं।।
महावीर हनुमान जी नाम आते ही भूत पिसाच भाग जाते हैं।।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
अर्थ: वीर हनुमान जी आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते हैं।।
और सब पीड़ा मिट जाती है..जो मन क्रम वचन से आपका ध्यान करते है वे सभी संकटों से सदैव बचे हैं।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।
अर्थ: तपस्वी राजा श्री रामचंद्र जी के सभी कार्यों को आपने ही तो पूरा किया है..आपने ही तो उसे सफल किया है।।
जिस पर आप की कृपा हो जाए वह कोइ भी में अन से तो नरूर पूरी होती है और उसका फल मिलता है जो कभी समाप्त नहीं होता।।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।
अर्थ: चार युगों में आपका प्रताप फैला हुआ है जगत में आपकी कृति प्रकाशवान है।।
हे श्री राम के दुलारे आप सज्जनों की रक्षा करते हैं और दृष्टों का नाश करते है।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
अर्थ: आपको माता जानकी ने एक ऐसा वरदान दिया है की आप जिसे चाहे उसे आठो सिद्धि और नवों निधि को आशीर्वाद रूप में प्रदान
कर सकते हैं।। आप निरंतर श्री रघुनाथ जी के शरण में रहते हैं, जैसे आपके पास राम नाम का ऐसा अबुध रसायन है जिससे असाध्य से
असाध्य रोग भी ठीक हो सकते हैं।।
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
अर्थ: आपके भजन करने से श्रीराम जी प्राप्त होते है राजांवर के दुःख दूर हो जाते हैं।।
और अंत समय में श्री रघुनाथ जी के धाम में मनुष्य चला जाता है और फिर भी राम भक्त ही कहलाता है।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
अर्थ: हे हनुमान जी आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं.. फिर अन्य किसी देवता की सेवा आराधना ही रह जाती है।।
हे वीर हनुमान जी, जो आपको सुमिरन करता है उसके सब संकट कट जाते है सब पीड़ाएँ मिट जाती हैं।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई।।
अर्थ: हे स्वामी हनुमान आपकी जय हो.. आप मुझ पर एक गुरु के सामान अनुग्रह कीजिए कृपा कीजिए।।
जो कोई इस हनुमान चालीसा का 100 बार पाठ कर लेता है तो वह सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है.. उसे महा सुख की प्राप्ति हो जाती है।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
अर्थ: भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाई .. तुलसीदासजी कहते है इसलिए भगवान शंकर साक्षी है जो इसे पढ़ेगा
उसे सिद्धि प्राप्त होगी।। तुलसीदास जी कहते है की, नाथ आप सदैव मेरे हृदय में डेरा डाल के निवास कीजिए।।
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
अर्थ: तुलसी दास जी कहते है की मंगलमूर्ति हनुमान जी, हे देवराज आप
श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी के सहित मेरा हृदय में निवास करिए।।
॥ श्री राम जय राम जय जय राम ॥
॥ श्री राम जय राम जय जय राम ॥
हनुमान चालीसा एक प्रसिद्ध भजन है जो श्री हनुमान जी की महिमा का वर्णन करता है। तुलसीदास जी द्वारा रचित इस चालीसा में हनुमान जी की वीरता, भक्ति, और शक्ति को सरल शब्दों में प्रस्तुत करते हैं। इसका नियमित पाठ करने से मन की शांति, साहस, और संकटों से मुक्ति मिलती है। भक्तगण इसे अपने जीवन में कठिनाइयों से उबरने और आत्मबल प्राप्त करने के लिए पढ़ते हैं।
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