श्री विट्ठल विपुल देव जी: स्वामी हरिदास जी के प्रथम शिष्य
परम पूजनीय श्री विट्ठल विपुल देव जी महाराज का जन्म सम्वत् 1532 शुक्ल पंचमी को राजपुर वृंदावन में हुआ । स्वामी श्री हरिदास जी के प्रथम शिष्य का गौरव प्राप्त करने वाले श्री विट्ठल विपुल देव जी अपने गुरुदेव के प्रति संपूर्णता समर्पित थे। ये स्वामी हरिदास जी से पाँच वर्ष बड़े ओर उनके मामेरे भाई थे। 30 वर्ष की आयु में ग्रह त्याग करके 70 वर्षों तक वृंदावन वास किया। अपना भाव था रस सागर विट्ठल जी के लिए उनके गुरु ही नित्य जोरि थे जिनका वियोग सह सकना सम्भव नहीं था ।
श्री विट्ठल विपुल देव जी की गणना परम ऊँच कोटि के विरक्तो एवं रसिको में की जाती है । रसौपसना एवं वाणी रचना के आधार पर आपको रस सागर कहा जाता है। आप आठों पहर अपने गुरुदेव स्वामी हरिदास जी के मुखारविंद का दर्शन, स्वामी जी के मुख से निकली प्रिया प्रीतम की लीलाएँ ओर स्वामी जी की परिचर्या यही श्री विट्ठल विपुल देव जी का जीवन था।
एक दिन श्री विट्ठल विपुल देव जी ने देखा स्वामी श्री हरिदास जी निधिवन के एक एकांतिक स्थान पर बेठकर के लताओं की ओर देखते रहते। कभी मुस्कुराते कभी प्रेमोउन्मत हो जाते। बहुत समय तक ऐसा करते ओर भी प्रणाम करते ओर वहाँ से चले जाते। श्री विट्ठल विपुल देव जी सोचते इधर क्या है जो रोज़ स्वामी जी प्रणाम करते है रोज़ भावदशा को प्राप्त होते है बहुत देर तक एक टक़ इस लता कुंज की तरफ़ देखते रहते है।
एक दिन स्वामी जी महाराज से श्री विट्ठल विपुल देव ने पूछा स्वामी जी हमें तो इधर केवल लताएँ ही दिखाई देती है ओर आप नित्य बहुत देर तक बैठकर इधर देखते रहते है मुस्कुराते रहते है फिर प्राणम करते है ओर चले जाते है।
श्री बाँके बिहारी जी की प्रकट लीला
तब स्वामी जी ने विट्ठल विपुल जी पर कृपा की ओर दिव्य दृष्टि प्रदान की ओर कहा देखो इस लता भवन की तरफ़ श्री विट्ठल विपुल देव जी ने जैसे ही देखा वहाँ दिव्य रंग महल उस रंगमहल में श्री प्रिया प्रीतम (राधा कृष्ण) विराजमान है जैसे ही इस दिव्य दृष्टि से प्राप्त से विट्ठल विपुल जी ने देखा की स्वामी जी आनंद मगन है ओर पद गायन कर रहे है। कही ऐसा ना लगे मैंने सिर्फ़ कोई दर्शय देखा फिर स्वामी जी ने विपुल जी कहा जाओ रंगमहल के अंदर से झारी उठाकर लाओ।
श्री विट्ठल विपुल देव रंग महल में गई दर्शन हुए प्रिया प्रीतम के समीप जो जल झारी थी उसे उठा कर लाए। विट्ठल विपुल जी ने स्वामी जी की तरफ़ देखकर आँखो में आँसु भरकर कहा की स्वामी जी आपकी कृपा से हमने ये सुख प्राप्त किया। पर जगत के साधारण जन कैसे इन्हें देख पाएँगे आप कृपा करो स्वामी जी इस जगत पर कृपा करो इस करुण भाव को सुनकर स्वामी जी ने प्रिया प्रीतम से प्रार्थना की कि आप जगत मंगल के लिए एक रूप होकर के श्री विग्रह रूप धारण करें।
उसी समय स्वामी जी, श्री विट्ठल विपुल जी ओर शिष्यो के देखते देखते ही त्रिभुवन मोहन, मदन मोहन प्रिया प्रियतम श्री बाँके बिहारी जी के रूप में प्रकट हो गए। श्री विट्ठल विपुल देव जी अत्यअधिक मोहित होकर श्री स्वामी जी के चरणो में गिर पड़े। ओर बोले स्वामी जूँ अपने इस संसार पर अपार कृपा के दी जो बाँके बिहारी जूँ के एक बार भी दर्शन करेगा वो कभी नर्क नहीं जाएगा।
श्री विट्ठल विपुल देव जी दौड़ कर गए ओर बिहारी जी को गोद में उठाया ओर स्वामी जी के सपने बैठ गए। ओर तभी श्री स्वामी ही ने प्रिया प्रीतम को देखते देखते पद रचना की अग़न शुक्ल पंचमी को ये लीला हुई जिस दिन श्री बाँके बिहारी जी का प्राकट्य उत्सव बनाया जाता है। ये श्री श्री विट्ठल विपुल देव जी कृपा से आज हमें श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन प्राप्त होते है।
श्री स्वामी जी के अनन्य श्री विट्ठल विपुल देव जी महाराज काफ़ी समय तक स्वामी जी की सेवा में रहे फिर स्वामी ही ने अंतरध्यान की लीला की जब ये देखा हमारे गुरुदेव हमारे नेत्रो से अंतरध्यान हो गए। उसे समय कई परतों की कपड़े की पट्टी आँखो पर बाँध ली जिन नेत्रो ने केवल गुरु जी को देखा है ये अब किसी ओर को नहीं देखेंगी। ओर साथ ही अन्न जल का परित्याग कर दिया। सात दिन सात रात्रि हो गई ना जल ना अन्न आँखो में पट्टी बांधे एकांत में बैठे श्री हरिदास श्री हरिदास बस अंश्रु परवाह अविरल चल रहा है।
जब पुरे रसिक समाज में इस बात का पता चला तब सभी संत बहुत व्याकुल हो गए। तभी सभी ने एक विधान रचा की रास लीला का आयोजन हो। रास लीला में जो प्रिया प्रीतम बने संतों ने उनसे कहा जब विपुल देव जी को यहाँ लाला जायेगा तब आप उनकी आँखों की पट्टी खोल देना। और आप उनके सर पर हाथ रख कर कहना आप हमारे दर्शन करो फिर प्रिया जू उनकी पट्टी खोल देंगी। फिर प्रिया जू उनको कुछ उच्छिष्ट पावेंगी तो उनका जीवन रह जायेगा।
तभी रास लीला प्रारम्भ हो गई रसिक शिरोमणि हरिराम व्यास जी को श्री विठ्ठल विपुल जी के पास भेजा गया क्युकी ये उनकी आज्ञा टलेंगे नहीं। तथा हरिराम व्यास जी गए और कहा विठ्ठल विपुल जी आपको रास में प्रिया प्रीतम याद कर रहे है आपको चलना ही होगा। बड़े रसिकों को आज्ञा से श्री विठ्ठल विपुल देव जी रास में आये। रास में आते ही श्री जी ने विठ्ठल विपुल देव जी के दोनों हाथ पकड़ लिए ओर लाला जी ने कहा बाबा नेत्रों से पट्टी खोल और देख हम प्रिया प्रीतम को और प्रिया जी पट्टी खोल दी।
विठ्ठल विपुल देव जी ने आंखे खोली देखा युगल सरकार तो कहा हमारे गुरुदेव श्री स्वामी जी महाराज कहा है? प्रिया जो ने कहा वो तो हमारी नित्य सहचरी अपने स्वरूप में स्थित हो गई है। अर्थात बस फिर विठ्ठल विपुल देव जी कहा लाडली जी अब तो हाथ पकड़ लिया अब जहा श्री स्वामी जी आपकी ललिता सखी है अब हम वही जाना चाहते है। तत्काल हाँ हरिदास हाँ हरिदास बस ऐसा उच्चारण करते हुए प्राण त्याग दिए।
अपने गुरुदेव के व्योग में हाँ हरिदास विठ्ठल विपुल देव जी अपने सहचरी स्वरूप में स्थित हो गए। हालिहारी है विठ्ठल विपुल देव जी की ऐसी गुरुभक्ति प्रिया प्रीतम के सामने होने पर भी अपने गुरुदेव के विरह में अपने प्राण त्याग दिए।
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